Thursday, 15 December 2011

गरुड्जी का ज्ञापन - कविता

गरुडजी का ज्ञापन
                                                                                   विजय सिंह मीणा


एक रोज गरुडजी ने गजब ढा दिया,
अपनी लम्बी चौडी मांगो का ज्ञापन,विष्णुजी को थमा दिया ।
ज्ञापन को पढकर विष्णुजी ,सोच में पड गये,
गरुड्जी अपनी मांगो के समर्थन में अड गये ।
गरुड के चेहरे पर था भारतीय बाबुओ जैसा तेज  ,
वहीं थपथपाने लगे जोर जोर से मेज ।
भगवन, वक्त बेवक्त तुम्हे यहां वहां ले जाता हूं ,
बदले में वैदिक काल से चली आ रही,  पे-स्केल ही पाता हूं ।
आपको पता नहीं कितनी मंहगाई है ,
मेरी कोनसी उपर की कमाई है ।
ना वीकली आफ,ना माईलेज भत्ता ।
आप तो आये दिन मेरे उपर बैठ जाते हो ,पकड कर हत्ता ।
मुझे अपना पे रिविजन चाहिये ,
अविलम्ब वेतन आयोग का गठन करवाईये ।
मेरे सारे सहकर्मियो के मजे है ,
सिर्फ मेरी ही शक्ल पर बारह बजे है ।
आप लक्ष्मीजी के वाहन को ही देख लीजिये ,जो सरकारी बाबू की तरह मस्त है ,
काम से बेखबर दिनभर सोने में ही व्यस्त है ।
वेतन भी पूरा पाता है ,
साल भर में सिर्फ दीवाली की रात को ही ड्युटी पर जाता है।
भगवन आपने तो अपना सिक्का जमा लिया है ,
भारत के नेताओ की तरह शेषनाग को मुफ्त में सरकारी आवास बना लिया है ।
शयन कक्ष के साथ साथ जलक्रीडा का भी आनंद उठाते हो ,
और मेरी मांगो को नाजायज ठहराते हो ।

मुझसे सुखी तो मेरा सहकर्मी नंदी है ,
ना उसके लिए मंहगाई और ना मंदी है ।
ड्यूटी की उसे नहीं है व्याधि,
क्योंकि शंकरजी लगा लेते है हजारो साल की समाधि ।
मुफ्त में ही वेतन पा रहा है ,
बिना पेमेन्ट ही हिमालय की नरम नरम घास खा रहा है ।
उसने तो अपना मनोरंजन क्लब भी खोल रखा है ,
दिन मौज में गुजरता है , क्योंकि सारे शिवगण उसके सखा है ।
जब भी आपके साथ ड्यूटी पर जाता हूं ,
कई कई दिनो तक मजबूरी में उपवास पर ही बिताता हूं .
क्योंकि जब तक आप साथ रहते है ,मैं शिकार भी नहीं कर सकता,
ड्युटी का हूं बड़ा पाबन्द ,इसिलिये आपको रास्ते में उतार भी नहीं सकता ।

जितना लेते हो काम उतनी पे चाहिये ।
कम से कम कुछ तो छ्टे वेतन आयोग से सीख जाईये ।
कामचोर बाबुओ के भी उसमे भत्ते और भारी वेतनमान है ।
ईष्र्या होती है उन्हे देखकर मुझसे कितने महान है ।


------- 




3 comments: