1-महारास-
विजय सिंह मीना
रूपसी के रूप से उपवन भी फ़ीका पड गया ।
ज्योत्स्ना की कांति का भी तेज फ़ीका पड गया ।
कोकिला सन्गीत गाती केश राशि देखकर ।
कमलिनी हसने लगी चन्दा सा मुखडा देखकर ।
शुक प्रफ़ुल्लित हो उठा दन्तावली दाडिम लगे ।
देख तिर्यक भृकुटी को काग भी भगने लगे ।
गाल या रसाल हैं यह देख खग चकरा गये ।
होंठों की ललाई से भ्रमर भी सब भरमा गये ।
आम्र मन्जरियो के नीचे रुपसी की चाल से ।
काम रति का नृत्य ज्यों सन्गीत तरु तमाल से ।
रूपसी के सुवास से यमुना सुवासित हो गई ।
कृ"ण के अधरों पै बन्शी भी तरन्गित हो गई ।
रूप राधा का यही उस कामवन में छा गया ।
कान्हा छवि को सन्ग ले महारास बनकर आ गया ।
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