Monday, 19 December 2011

महारास - कविता


1-महारास-
                                                                                                विजय सिंह मीना
रूपसी के रूप से उपवन भी फ़ीका पड गया
ज्योत्स्ना की कांति का भी तेज फ़ीका पड गया
कोकिला सन्गीत गाती केश राशि देखकर
कमलिनी हसने लगी  चन्दा सा मुखडा देखकर
शुक प्रफ़ुल्लित हो उठा दन्तावली दाडिम लगे
देख तिर्यक भृकुटी को काग भी भगने लगे
गाल या रसाल हैं यह देख खग चकरा गये
होंठों की ललाई से भ्रमर भी सब भरमा गये
आम्र मन्जरियो के नीचे रुपसी की चाल से
काम रति का नृत्य ज्यों सन्गीत तरु तमाल से
रूपसी के सुवास से यमुना सुवासित हो गई
कृ" के अधरों पै बन्शी भी तरन्गित हो गई
रूप राधा का यही उस कामवन में छा गया
कान्हा छवि को सन्ग ले महारास बनकर गया

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