Monday 26 December 2011

समरथ को नहीं दोष गुसांई -- कहानी

कहानी
समरथ को नहीं दोष गुसांई
लेखक-विजय सिंह मीणा

गांव के ठीक उत्तर में चार पांच घर हरिजनों के हैं। पुरुष दिन भर सूप और टोकरे बनाने का काम करते है ।इनकी आरतें गांव के सवर्णों के यहां सफाई का काम करती हैं ।सारा गांव किसानों का है सो पशुधन भी काफी मात्रा में है ।ये औरतें रोज सुबह इनके घरो में जाकर पशुओं का गोबर और उनके बाडे की सफाई करती हैं ।बदले में उन्हैं दोपहर को रोटी देदी जाती है । यदि कोई बार त्यौहार है तो अगले दिन बासी पकवान भी दिये जाते है गांव मे यदि किसी के यहां कोई ब्याह - शादी या मृत्युभोज होता है तो ये लोग पत्तल उठाने का काम करते हैं । पत्तलो से झूठन उठाकर ये अपने पालतू सुअरों को खिला देते है ।
इन्हीं में से एक घर छीतर हरिजन का है ।इसकी एक जवान बेटी है सन्नो।उसका ब्याह छोटी उम्र में ही कर दिया था लेकिन किसी बात से नाराज होकर उसे ससुराल वालों ने छोड दिया था । तब से सन्नो कभी ससुराल नही गई ।सन्नो भी प्रतिदिन सफाई करने गांव मे जाती थी । सन्नो की लम्बी कद काठी , सावला रन्ग, मोटी मोटी आंखे और गदराया बदन उसे विरासत मे मिले थे ।
बसन्त का मादक महीना ।चारों और गेहू और जौ की पकी हुई पएसल खेतो मे पककर तैयार थी ।किसान फसल की कटाई मे लगे हुए थे ।गर्मी ज्यादा ना हो जाये सो किसान मुंह अन्धेरे ही खेतो पर पहुच जाते थे ।
भरोसी एक पेंतालीस वर्शीय किसान था । उसका भरा पूरा परिवार था ।एक लडकी जिसकी वो शादी कर चुका था ।दो बेटे थे ।स्त्री उसकी निहायत सीधी थी । आज भरोसी के भी सारे घरवाले जल्दी ही खेतो पर चले गये । घर पर अकेला भरोसी रह गया था क्योंकि उसे भेसो को चारा और सानी करनी थी ।उसने जल्दी जल्दी भेसो को चारा डाला , सानी की और हाथ धोकर खेतो पर जाने की तैयारी करने लगा ।इतने में ही सन्नो सफाई करने आ गई । वह सफाई मे जुट गई । भरोसी ने मुडकर देखा तो सन्नो की गदराई देह और आस पास के सूनेपन ने उसके मन मे हलचल मचा दी ।काफी देर तक वो विचारो की उहापोह मे लगा रहा ।अपने मन को समझाने का भरसक प्रयास किया मगर कामी मन डोल चुका था ।उसकी आंखो मे वासना के अन्गारे जल रहे थे ।उत्तेजना चरम पर थी । उसने मुख्य द्वार धीरे से बन्द कर दिया । सन्नो को इसका आभास तक नही हुआ ।दबे पांव वह सन्नो के निकट पहुंचा ।पीछे से सन्नो को अपने बाहुपाश मे जकड लिया ।इस अप्रत्याशित वार से सन्नो हक्की बक्की रह गई ।
'' ये क्या करते हो काका ?छोडो मुझे ।'' सन्नो ने छटपटाते हुए कहा ।
''घबरा नही सन्नो । देख तुझे तेरे मर्द ने छोड रखा है। कब तक ऐसे जियेगी । ये तो तेरी भी भूख है और मेरी भी । '' भरोसी की सांसे फूल रही थी ।
'' शर्म नही आती तुझे । तू मेरे बाप के समान है ।मेरी उम्र की तेरी लडकी है । छोड दे नही तो शोर मचा दूंगी ।'' भरोसी के मजबूत बाहुपाश मे सन्नो छटपटा रही थी । वो काफी गिडगिडाई मगर भरोसी पर उसका कोई असर नही हुआ। कामासक्त भरोसी ने उसे भेस के खुंणीटे के पास पटक दिया ।एक ही क्षण मे सन्नो की इज्जत तार तार हो गई । भरोसी अपना मुंह काला कर चुका था ।ज्वार शान्त हुआ ।अब भरोसी भी पता लगने के डर से घबरा रहा था ।उसके ढीट मन ने फिर पासा फेंका -
'' देख सन्नो जो होना था सो हो गया। तू यदि किसी से कहेगी तो तू कही की नही रहेगी ।बदनाम हो जायेगी ।इस बात को यही खत्म कर दे। इसी मे तेरी भलाई है ।'' भरोसी के स्वर मे घबराहट और बेशर्मी झलक रही थी ।
औरत की यही विवशता है कि कि वह अपनी बदनामी के डर से विष का घूंट पीकर भी चुप रह जाती है ।ऐसे मे इस पुरुष प्रधान समाज मे आदमी की कम औरत की ज्यादा बदनामी होती है । सन्नो इसका अपवाद नही थी ।उसने चुप रहने में ही अपनी भलाई समझी । भरोसी की घाघ नजरो ने ताड लिया कि सन्नो अब किसी से भी नही कहेगी । उसने अपने कुर्ते की जेब से सौ रुपये निकाले और सन्नो की मनुहार करने लगा ।
'' तेरे लिये कुछ ले लेना । ये मत समझना मैं तुमसे दूर हूं।दिल मे किसी तरह का पछतावा मत रख। बावली तुझे मन ही मन मे तो कितने दिनो से चाहता था । कभी तुझसे मन की बात कहने की हिम्मत नही हुई । ये भरोसी कभी तुझसे दूर नही है कभी आजमा के देख लेना ।'' बिना कुछ बोले सन्नो वहां से चली गई ।
घर पहुचकर उसने मुंह हाथ धोये और चारपाई पर लेट गई । दाम्पत्य सुख से वन्चित सन्नो का शारीरिक सम्बन्ध का ये पहला ही मोका था। उसे एक अजीब सी सिहरन का अहसास हुआ था आज जो पहले कभी नही हुआ ।कभी उसका मन उसके साथ हुई जबरदस्ती से नफरत कर उठता तो दूसरे ही क्षण उस सुखद अहसास से उसकी रोमावली को पुलकित कर देता जो भरोसी के सामीप्य से हुई थी । विचारो की इसी तन्द्रा मे उसे पता ही नहीं चला कि कब उसे नींद आ गई ।
अगले दिन सन्नो फिर सफाई करने आई ।भरोसी ने बेझिझक आज फिर उसके साथ वही पुररावृत्ति की ।आज फर्क इतना था कि सन्नो ने इसका कोई खास प्रतिरोध नही किया ।अब तो भरोसी की आये दिन ये रासलीला अनवरत रुप से चलने लगी । सन्नो को भी इससे कोई एतराज नही रहा । उसे भी भरोसी मे अब कुछ अपने पन का अहसास सा होने लगा ।
बैसाख आते आते हवा मे भी गरमाहट बढ गई । कभी गर्म हवा का झोंका शरीर मे चुभन पेदा कर देता तो कभी बीच बीच मे हल्की ठन्डी हवा ऐसा एहसास देती थी मानो पास मे कोई नदी की धारा बह रही हो ।गांव के चारो और खलिहानो में किसान फसल को बरसाने मे लगे हुए थे । भरोसी का खलिहान गांव के समीप ही था । कल शाम को ही उसने बेलों से दांय की थी ।आज सारे घरवाले बरसाने मे लगे हुए थे ।बीच बीच मे भूसे के टुकडे भी गेहू के बुकडे मे आ जाते थे उन्हे भरोसी झाडू से अलग कर रहा था । पीत वर्ण गेहू का ढेर खलिहान मे बडा ही आर्कषक लगता है ।किसान के लिये वह सोने से कम नही होता । बुकडे पर पडने वाली सूर्य की किरणें गेहू के दानो से टकराकर भरोसी की आंखो को चुधियां देती थी ।उन किरणो के विकर्षण मे उसे रह रह कर सन्नो के चेहरे का आभास हो रहा था ।भरोसी की बेचेनी बढती जा रही थी । आखिर उसने घरवालो से कह दिया कि मेरी आज तबियत खराब है ।मैं घर जाकर आराम करुगा ।तुम लोग शाम तक इस काम को पूरा कर लो ।भरोसी घर की ओर चल दिया । रास्ते मे सन्नो का घर था । सन्नो ने भरोसी को जाते हुए देख लिया था । थोडी देर बाद सन्नो भी उसके घर की और चली आई  
   भरोसी का मकान एक मन्जिल का था ।उसने मकान के उपर एक छप्पर डाल रखा था जिसे गांव मे मेडी कहते हैं ।उसके मकान के ठीक बगल मे सेठ अमर चन्द की तीन मन्जिल की हवेली थी ।सेठ दिन में फसल के व्यापार के लिये मुंह अन्धेरे ही खलिहानो की ओर निकल जाता था । सेठानी घर मे ही रहती थी । आज सेठानी स्नान कर हवेली की छत पर कपडे सुखाने गई । उसने भरोसी की मेडी में जो दृश्य देखा उसे देखकर सेठानी की आंख फटी की फटी रह गई । उसके आश्चर्य का ठिकाना नही रहा । भरोसी व सन्नो आलिन्गन्बध्द थे ।     सन्नो की खिलखिलाहट सेठानी के दिलो दिमाग को हिला रही थी । एक बार तो उसे भरोसी पर विश्वास ही नही हुआ कि उसकी लडकी की उम्र की सन्नो के साथ वह रन्गरेलियां मना रहा है । सेठानी ने आव देखा ना ताव सीधी नीचे आ गई । उसने पडौस के लोगो को इकट्ठा कर लिया। लोगो ने भरोसी को रन्गे हाथो पकड लिया ।
   कोई जूता मार रहा था तो कोई डन्डे से ही अपना गुस्सा भरोसी पर उतार रहा था । भरोसी वहां से जान बचाकर भाग गया । यह समाचार गांव मे आग की तरह फैल गया । धीरे धीरे यह बात आस पास के गांवो मे भी फैल गई । जो भी सुनता भरोसी को धिक्कारता । सवर्ण समाज के ठेकेदार पन्च पटेलो का तो मानो खून ही सूख गया । एक हरिजन लडकी के साथ कुकर्म करने वाला व्यक्ति कैसे इस समाज मे रहने लायक है । जल्दी ही कोई निर्णय नही लिया तो बिरादरी की नाक कट जायेगी । पन्चो की यह सुगबुगाहट पांच गांवो की पन्चायत मे बदल गई ।
उधर भरोसी भागकर पहाड के पास बीहड मे जा छुपा । उसे जाते हुए गांव के इन्दर और बदरी ने देख लिया था ।इन्दर बहुत चालाक और मनोविनोदी किस्म का व्यक्ति था । किसी लेन देन को लेकर भरोसी के साथ उसकी काफी पुरानी अनबन थी । वो ऐसे ही मोके की तलाश मे था । उधर बदरी गांव मे लगाई बुझाई के लिये विख्यात था । उसे यदि कोई जरुरी चीज आसानी से नही मिलती थी तो वह चोरी करने मे भी नही हिचकता था । एक बार भरोसी ने बदरी को कुए से चडस और बरत चुराते देख लिया था और गांव मे कह दिया था । उसी बात से बदरी उससे काफी दिनो से नाराज था ।आज उसे भी बदला लेने का पूरा मोका मिल गया ।
गांव मे कुल पांच पटेल थे । यह पटेलाई इन्हें पीढी दर पीढी विरासत मे मिली थी । गांव के अहम फैसले ये ही लेते थे । इन पन्चो मे जगराम और घासी पटेल तो गांव की भलाई के लिये सोचते थे परन्तु बाकी तीनो छाजू , सोगुण और घीस्या अवसरवादी पटेल थे । ये अपने निजी स्वार्थ के लिये कई बार अनुचित बात का भी समर्थन कर देते थे । गांव के हर छोटे बडे कामो मे इन्हे जरुर बुलाया जाता था । ऐसा भी नही था कि ये पटेल दूध के धुले थे ।इनके गांव मे कई उचित - अनुचित दोष थे ।
  नाम सोगुन था मगर वह अवगुणो की खान था । वो एक विधवा फकीरन से फसा हुआ था । वो कई बार गर्भवती हो गई थी मगर इसने उसका गर्भपात करवा दिया । इस बात को सारा गांव जानता था । आज भी ये उससे खुले आम मिलता जुलता है ।
दूसरा पन्च घीस्या था जो स्कूल के लिये इकट्ठा किये गये रुपयो को बेईमानी से हडप कर गया था ।ज्यादा बात बढी तो सर पर गन्गाजी उठा गया था । सब कुछ माफ । तीसरा पन्च छाज्या था जिसकी कुंवारी लडकी गर्भवती हो गई थी । भाग दोड कर बडी मुश्किल से मामले पर पर्दा डाला था । वही आज पन्चायत मे सर्वे सर्वा है ।
पन्चायत छाजू पटेल के मकान के आगे बैठी ।आस पास के पांच गांवो के पटेल आ चुके थे । हजारो की तादाद मे भीड इकट्ठा हो गई । गांव के नौजवान बाहर से आनेवालो के लिये दोड दोड कर हुक्का भर रहे थे । कोई पानी पिलाने मे लगा हुआ था । लोगो की जबान पर भरोसी के कुकर्म की सुगबुगाहट थी । पन्चो ने आसन ग्रहण किया । कार्यवाही शुरु करते हुए छाजु ने अपने चिरपरिचित अन्दाज मे बोलना शुरु किया -
''पन्चो आज एक नीच व्यक्ति ने हमारी नाक कटवा दी है । इस बात का तो आप सभी पन्चो को पता लग ही चुका है । अगर ऐसा ही होता रहा तो हमारे जैसे पन्चो का इस समाज मे होना ना होना बराबर है। सभी पन्चो से विनती करता हूं कि इस पर अपनी अपनी राय दें ॥''
दूसरे पन्च घासी ने अपनी बात कहनी शुरु की -''पन्चो भरोसी को पन्चायत के आगे बुलाया जाये । पहले हम उसके मुंह से सच्चाई जानना चाहते हैं । तभी पन्चायत की कर्यवाही आगे बढेगी ।'' दरअसल इसके पीछे घासी का इरादा था कि यदि भरोसी पन्चायत के सामने मना कर देगा तो बात को आई गई करवा देगे ताकि गांव की बदनामी होने से बच जाये । वो नही चाहता था कि पांच गांवो के पन्चो के बीच हमारे गांव की बदनामी हो ।
भीड मे बैठा इन्दर उचित मोका देखकर खडा हुआ। उसने सभी को राम राम की और कहने लगा - ''पन्चो भरोसी कहां है क्या किसी को पता है ?'' चारो और सन्नाटा छा गया । किसी को भी पता नही था । छाजु पटेल ने इन्दर कि बात का समर्थन किया । इन्दर फिर बोला पन्चो मुझे और बदरी को एक घन्टे की मोहलत दो हम भरोसी को लेकर आते हैं । कहकर दोनो चल दिये ।
पहाड की उपत्यका में बडे बडे रेत के गहरे गड्डे बने हुए हैं ।इनमे जन्गली झाडियां के झुरमुट चारो और फैल रहे है । यह जगह बडी ही डरावनी और सुनसान है । अब तो कम हो गये एक जमाने मे यहां जन्गली जानवरो की तादाद बहुत थी । थोडा अन्दर चलने पर एक बहुत ही बडा गर्त है। उसमे जगह जगह झुरमुट दिखाई देते है ।बीच बीच मे बबूल के बडे दरख्त भी खडे है ।ऐसे ही एक झुरमुट के नीचे भरोसी अपना तोलिया बिछाकर लेटा हुआ था । रह रहकर उसके मन मे बुरे बुरे खयाल आ रहे थे ।दबे पांव इन्दर और बदरी वहां पहुंच गये । अचानक उन्हे आया देखकर भरोसी डर से कांपने लगा ।वह हाथ जोडकर घिघियाने लगा ।'' मुझे माफ करदो , मैं तुम्हारे पैर पडता हूं ।'' इसी के साथ भरोसी इन्दर के पेरो मे लेट गया ।
घबरा मत भरोसी हम तो तेरी मदद करने आये है । तुरन्त बदरी ने उसे उठाया और बडे प्यार से कहने लगा -'' भरोसी सारा गांव तेरा दुश्मन हो गया है लेकिन ऐसी मुसीबत की घडी मे हम तेरे साथ है । तूने तो सदा हमारे साथ धोका किया मगर हम तेरे जेसे नही है ।
भरोसी को इनकी बातो पर सहज ही विश्वास तो नही हो रहा था मगर उसके पास और कोई चारा भी तो नही था । दोनो उसे समझाने लगे । गांव मे पन्चायत हो रही है । हमने पन्चो की थाह ली थी । तेरा बचाव तो अब एक ही बात से हो सकता है कि जो भी घटना घटी है उसे इमानदारी से सच सच पन्चो के सामने बयान कर दे । हो सकता है तेरी सच्चाई से पन्च तुझे माफ करदे। भरोसी को खूब अच्छी तरह समझाकर दोनो अपने साथ लेकर गांव की और चल दिये।
गांव से थोडी ही दूरी पर चार पांच हरिजनो ने हाथो मे लाठिया लेकर भरोसी को आ घेरा। उन्होने उसकी पिटाई चालू कर दी । इन्दर ने हरिजनो को ललकारा '' खबरदार जो एक भी आगे बढा। एक एक की लाश जायेगी यहांसे । अब ये मामला तुम्हारा नही पन्चायत का है । जो पन्चायत उचित समझेगी वही फैसला करेगी '' इन्दर की ललकार को सुनकर हरिजन वहां से भाग लिये । भरोसी की पीठ पर लाठियो के वार से खून रिस रहा था । भय और घबराहट के भाव उसके चेहरे पर थे । कपडे भी खीचा तानी मे फट गये थे ।
हजारों लोगो के हुजूम के बीच भरोसी को लाया गया । सभी उस पर थू थू कर रहे थे । भरोसी ने दोनो जूते अपने सिर पर रखे और पन्चायत के सामने पेश हो गया । बगल के गांव से आये हरिया पटेल ने पूछा- ''क्यों रे भरोसी , ये सब हम क्या सुन रहे हैं। पन्चो के सामने बता।इसमे कितनी सच्चाई है ॥'' इसी के साथ हरिया अपने स्थान पर बैठ गया ।
''पन्चो , अब मुझे मारो या छोडो ये अपराध तो मैने किया है। एक बार नही पिछले दो महिने से अनेक बार किया है ॥मेरी जान बख्सने की दुहाई है पन्चो ।मैं तुम्हारी गाय हूं ।'' कहकर भरोसी आंखो मे आंसू बहने लगे ।
   इस बात को सुनकर चारो और से लोगो की आवाजे आनी शुरु हो गई । कोई कह रहा था दोनो को जिन्दा जला दो तो कोई कह रहा था दोनो का काला मुंह करके गधे पर बिठाओ । जितने मुंह उतनी ही बातें । गांव के पन्चो के लिए अब उसके बचाव मे कहने को कुछ रह ही नही गया था । सबसे ज्यादा दुख जगराम पटेल को हो रहा था । भीड का हो हुल्लड बढता जा रहा था । जेसे तेसे जगराम पटेल ने भीड को शान्त किया । उसने कहा कि यह काम पन्चायत का है कोई शोर शराबा ना करे । पन्चो को अपना काम करने दें । सभा मे सन्नाटा छा गया । पन्चो ने सलाह मशविरा किया । थोडी देर के लिये सभी पन्च छाजु के मकान के अन्दर चले गये । स्थानीय गांव के पटेल मामले पर परदा डालने की फिराक मे थे परन्तु अन्य गांवो के पन्चो ने अपने समाज और जाति की दुहाई देकर उसे दन्डित करने पर जोर दिया । आखिर पन्चो की एक राय बनी केवल जगराम और घासी उनसे पूरी तरह सहमत नही थे । उनका कहना था कि भरोसी को जाति से तो बाहर कर दो लेकिन उस पर अन्य अमानवीय प्रतिबन्ध ना लगाये जायें । बाकी पन्चो का बहुमत था सो इनकी बात को कोई तवज्जो नही दी गई । सभी पन्च एक बार फिर पन्चायत के बीच आ गये । अब सबको पन्चायत के फैसले का बेसब्री से इन्तजार था । सभी लोग पन्चो की और टकटकी लगाये देख रहे थे । सन्नो का बाप छीतर भी न्याय की आस मे उदास और गुमसुम बैठा हुआ था । आखिर फैसला सुनाने का आदेश छाजु पटेल को दिया गया ।
''पन्चो और सभी गांवो से आये जाति भाइयो । ये तो साबित हो ही चुका है कि भरोसी ने अपना जुर्म कबुल कर लिया है । हम सभी पन्चो ने इस पर ध्यान से विचार किया । हमारी जाति की मर्यादा को ध्यान मे रखते हुए हम सभी की जो राय बनी है उसे मैं अर्ज करता हूं । भरोसी ने एक नीची जाति की लडकी के साथ कुकर्म किया है सो इसे आज से ही ये पन्चायत जाति से बाहर करती है ।साथ ही ये ना तो किसी के कुए से पानी लेगा और ना ही किसी के खेत या जमीन पर पैर रखेगा । समाज से इसका हुक्का पानी और सभी तरह के सम्बन्ध आज से खतम समझे जायेगे । इसके साथ ही सन्नो की भी इसमे गलती पाई गई है सो यह पन्चायत छीतर को यह हुकम देती है कि सात दिन के भीतर सन्नो का कही भी बन्दोबस्त करे । वो अब इस गांव मे नही रहेगी । इसका यदि पालन नही किया तो छीतर के परिवार को इस गांव से बेदखल कर दिया जायेगा ।''
फैसला सुनते ही भरोसी की औरत और बेटों ने पन्चो से काफी मिन्नत की कि वे इस तरह के प्रतिबन्धो मे थोडी ढील दे मगर उनकी बात को सभी ने अनसुना कर दिया । उधर छीतर पुकार पुकार कर कह रहा था कि अन्नदाता एक तो हमारी इज्जत गई और उपर से हमे भी दन्ड दिया जा रहा है । यह कहां का न्याय है माई बाप ।
घासी पटेल ने छीतर से कहा -''तुम क्या चाहते हो जमादार । अपनी बात पन्चो के सामने रखो ।''
''हुजुर,पन्चो मे परमेश्वर का वास होता है । शोषण मेरी लडकी का हुआ है। उसकी इज्जत गई , अब वो कहीं की भी नही रही है । फैसला मेरी लडकी के भविष्य को भी ध्यान मे रखकर लिया जाये । मेरी पन्चो से यही विनती है कि सन्तो को जिन्दगी भर के लिये भरोसी के साथ कर दिया जाय । जिसने उसकी इज्जत बिगाडी है वही जीवन भर उसका बोझ भी उठाये हुजुर । न्याय तो यही कहता है अन्नदाता । आगे पन्चो की मर्जी । आप का ही अन्न खाकर गुजर बसर करते है हुजुर । अब आप लोगो से ही न्याय नही मिलेगा तो मैं कहां जाऊ हुजुर ।'' कहते कहते छीतर दहाड मारकर रोने लगा । उसकी आंखो से अविरल अश्रुधारा बह रही थी ।
ये सुनते ही सभी पन्च भडक गये। बाकी लोग भी छीतर को गाली गलोज करने लगे । सोगुन ने छीतर को फटकारा -'' क्यों रे , तेरी इतनी मजाल तू हमारी बराबरी करना चाहता है । तू अपनी बेटी हमारे समाज मे देकर अपने आप को हमारे बराबर खडा करना चाहता है । भाग जा यहां से पन्चायत ने जो उचित समझा वही फैसला किया है । अपनी लडकी का बोझ तू ही सभांलेगा । इसमे गलती तेरी लडकी की भी उतनी ही है जितनी भरोसी की है । यह गनीमत समझ की इतना होने के बाद भी हम तुम्हे गांव से नही निकाल रहे ॥''
बाकी पन्चो ने भी उसकी हां मे हां मिलाई लेकिन जगराम पटेल का जी कुछ भारी हो रहा था । वो अपने आप को रोक नही पाया और बोलने लगा-'' पन्चो एक हद तक छीतर को भी न्याय मिलना चाहिये । मेरे हिसाब से सही न्याय ये है कि छीतर सन्नो की कहीं और शादी करदे और उसका सारा खर्च भरोसी उठाये । न्याय का अधिकार गरीब और अमीर सभी को है ।
जगराम अपनी बात कह ही रहा था कि हरिया , छाज्या ,सोगुण और बाकी पन्चो ने इसका विरोध किया । तर्क देने लगे कि किसी नीची जाति को हम बराबरी का दर्जा नही दे सकते और ना ही उसके ब्याह की जिम्मेदारी भरोसी को दे सकते । यह सरासर हमारी जाति और पन्चो का अपमान होगा । हुल्लडबाजी मे जल्दी जल्दी पन्चायत को बर्खास्त कर दिया गया । पन्चायत धीरे धीरे बिखर गई । भरोसी अपने बच्चो के साथ घर चला गया । भरोसी को इस फैसले को मानने कि सिवा और कोई चारा भी नही था ।
अगले दिन भरोसी अपने खेत पर जा रहा था। रास्ते मे वो जिधर भी जाता लोग उस पर जूते और पत्थर फेक रहे थे । वह घबरा गया । इन परिस्थितियो मे वह कैसे गांव मे रह पायेगा । दिन भर वह अपने खेत पर ही रहा । वापस आने की उसकी हिम्मत नही हो रही थी ।
आधी रात हो चुकी थी । गांव से रह रह कर कुत्तो के भोकने की आवाज आ रही थी । जन्गल में सांय सांय करती हवा । भरोसी ने गांव के दूसरे छोर से दबे पांव प्रवेश किया । वो छुपते छुपाते अपने घर पहुंचा । कुछ रुपये उसने अपनी जेब मे डाले और वहां से सीधा चल दिया ।अब वह रात के अन्धेरे मे छाज्या पटेल की बैठक मे पहुंच गया था । छाज्या बैठक मे ही सो रहा था ।भरोसी ने धीरे से फुसफुसाकर छाज्या को जगाया।
''कौन है इतनी रात गये ?''छाज्या ने चारपाई पर उठते हुए कहा ।
'' मैं हूं पटेल, भरोसी ।'' भरोसी ने छाज्या के दोनो पैर पकड लिये । वह फफक फफक कर रो पडा । पटेल मेरा कोई रास्ता निकालो नही तो गांव के लोग मुझे मार डालेंगे ।
'' ये तो पन्चायत का पऐसला है अब मैं क्या कर सकता हूं ?''
'' मै भी बुरे दिनो मे पटेल तुम्हारे काम आया था । कुछ तो उस बात पर ध्यान दो ।''
सुनते ही पटेल थोडी देर मोन हो गया । भरोसी ने जेब से हजार रुपये निकाले और छाज्या के हाथ मे थमा दिये । ''अब जेसे भी हो पटेल मेरी इज्जत तुम्हारे हाथ है ।''
छाज्या का मुख भरोसी की और था उसने कहा ठीक है मै कोशिश करता हूं ।पटेल का लहजा अब बिल्कुल नरम हो चुका था । मै अभी बाकी पन्चो के पास जाकर कुछ जुगत करता हूं । अब तू पिछवाडे से निकल जा । किसी ने देख लिया तो अनर्थ हो जायेगा ।
भरोसी के जाने बाद छाज्या ने अपनी जूती पह्नी और लाठी हाथ मे लेकर चल दिया । रात मे वह सभी पटेलो से मिला । जगराम और घासी ने उसकी बात नही मानी बाजी दो पटेलो को उसने भरोसी से पांच-पांच सौ रुपय दिलाने का वादा कर अपनी और कर लिया ।तय ये हुआ कि कल अपने गांव की ही दोबारा पन्चायत बुलाई जाये ।
छाज्या पटेल का भरोसी का साथ देने के पीछे एक बहुत बडा कारण था ।साल भर पहले छाज्या की लडकी कमला जिसका गांव के एक युवक से समबन्ध था। वह कुंवारी गर्भवती हो गई थी ।पटेल के लिये तो यह डूब मरने वाली बात थी ।ऐसे मे भरोसी ने ही उसकी सहायता की थी ।भरोसी ने अपने एक परिचित डाक्टर से उस लडकी का गर्भपात करवाया था । कुछ दिन बाद भरोसी ने ही एक जगह बात चलाकर उस लडकी का रिश्ता करवा दिया था ।छाज्या उस बात का अहसान मानता था सो बिना देर किये वो भरोसी की सहायता करने को तैयार हो गया था ।
अगले दिन छाज्या के घर फिर पन्चायत बैठी लेकिन फर्क यह रहा कि इसमें केवल आधा गांव ही आया । बाकी गांव दो पटेलो के कहने पर पन्चायत मे नही आया । पन्चायत की कार्र्य-वाही शुरु हुई । छाज्या कहने लगा -'' पन्चो गलती तो इन्सान से ही होती है लेकिन इसका यह मतलब तो नहीं कि हम उसकी जान ही ले ले। ऐसी गलती पहले भी कइ गांवो मे हुई है और वहां फैसला यही रहा है कि भरोसी पर कुछ पन्चायती जुर्माना लगाकर उसे माफी का एक मोका देना चाहिये । अब पन्चो की राय यही है कि सबसे पहले तो भरोसी शुध्दि के लिये गन्गा स्नान करके आये। वहां से आने के बाद वो एक भोज करे और हम सभी उस भोज मे जीमे। तभी इसे जाति मे आया माना जायेगा । इसके साथ ही गांव की अधूरी पाठशाला मे यह दो कमरो का निर्माण भी करवाये। हम सभी पन्चो का यही फैसला है ।''इसे सुनते ही बाकी दोनो पटेलो ने फैसले का समर्थन कर दिया । काफी लोगो ने इसका विरोध भी किया लेकिन पन्च तो बिक चुके थे अब वो कुछ भी सुनने को तैयार नही थे ।
भरोसी अगले दिन गन्गाजी चला गया ।आनन फानन मे छीतर ने सन्नो का एक अधेड उम्र के आदमी के साथ ब्याह कर दिया । सन्नो अपनी तकदीर को कोसते हुए उस गांव से चली गई । इस अनमेल शादी से सन्नो बिल्कुल नाखुश थी ।भरोसी की दगाबाजी और पन्चो के अन्याय ने उसकी जिन्दगी को नर्क बना दिया था।
गन्गाजी से आने के बाद भरोसी ने एक भोज किया । उसमे तीनो पटेल और उनके साथ एक चोथाई गांव ही उसमे आया ।उसने स्कूल मे भी दो कमरो का निर्माण चालू करवा दिया ।इन सब का फायदा यह हुआ कि भरोसी के उपर लगे प्रतिबन्धो का अब कोई अर्थ नही रह गया । भरोसी पर पन्चायत के छद्म दन्ड का कोई गहरा असर नही हुआ । उसव्की नीयत मे कोई बदलाव नही आया था ।हालांकि इस वाकिये के बाद गांव मे उसका नाम भरोसी हरिजन पड गया किन्तु सुनने मे आया कि कुछ दिन बाद ही उसने अपनी एक रिश्तेदारी मे फिर वही पुनरावृत्ति कर दी
जनवरी 1993


Monday 19 December 2011

महारास - कविता


1-महारास-
                                                                                                विजय सिंह मीना
रूपसी के रूप से उपवन भी फ़ीका पड गया
ज्योत्स्ना की कांति का भी तेज फ़ीका पड गया
कोकिला सन्गीत गाती केश राशि देखकर
कमलिनी हसने लगी  चन्दा सा मुखडा देखकर
शुक प्रफ़ुल्लित हो उठा दन्तावली दाडिम लगे
देख तिर्यक भृकुटी को काग भी भगने लगे
गाल या रसाल हैं यह देख खग चकरा गये
होंठों की ललाई से भ्रमर भी सब भरमा गये
आम्र मन्जरियो के नीचे रुपसी की चाल से
काम रति का नृत्य ज्यों सन्गीत तरु तमाल से
रूपसी के सुवास से यमुना सुवासित हो गई
कृ" के अधरों पै बन्शी भी तरन्गित हो गई
रूप राधा का यही उस कामवन में छा गया
कान्हा छवि को सन्ग ले महारास बनकर गया

Thursday 15 December 2011

नानी


कविता
नानी
-विजय सिंह मीणा -

गौर वर्ण लम्बी कद काठी, मृग नयनी सी लगती थी
वाक पटु हसमुख स्वभाव, ममता की मूरत लगती थी

पाक शास्त्र और लोक गान की , उसमें कला निराली थी
हस्त कला की निपुण , गांव की दादी वो मतवाली थी

तीन साल का था जब मैं,मुझको सन्ग अपने ले आई
ममता की वो सजल मूर्ति, कभी ना मां की याद आई

साथ सुलाती लोरी गाती , देख देख  हर्षाती वो
कांधे पर बैठाकर मुझको , सारा गांव घुमाती वो

जब मैं रोता मानो उसकी , सारी खेती सूख गई
जब मैं हसता ऐसे हसती,   मानो कोयल कूक गई

मेरी बाल सुलभ क्रीडाएं, मनमाना सुख देती थी
नानी की सारी चिन्ताएं, पलभर में  हर लेती थी ।

सबसे पहले घर में खाना,मुझे खिलाया जाता था
सुबह सुबह नानी का पल्लू, पकड दही मैं खाता था

ऊंगली थामे उसकी मैं, जब विद्यालय की ओर गया
उस ऊंगली के सम्बल से , मेरे जीवन में भोर हुआ

शैतानी पर उसके डन्डे खाते नहीं अघाते थे
पर पल में हम अपने को , उनके आंचल में पाते थे।



सात बरस मैं रहा साथ में, सात जनम का सुख पाया ।
इन्ही सात बरसो में मैने, जीवन अमृत को पाया ।

जब भी आज दुविधा के , मैं किसी मोड पर आता हूं
ह्रदय पटल पर  नानी का ,प्रतिबिम्ब झलकता पाता हूं

साहस और हिम्मत का प्रतिफ़ल, इसी बिम्ब से पाता हूं
जीवन की टेढी राहों  में,अविरल बढता जाता हूं

कैसे जाऊं भूल उसे ,मेरे जीवन की दानी थी
सब न्यौछावर कर गई मुझपर, ऐसी मेरी नानी थी

गिरकर उठना उठकर चलना, चल कर राह पकड लेना
बार बार समझाती मुझको , पाकर  मन्जिल दम लेना

शायद किसी जनम का मैंने , ये तो प्रतिफ़ल पाया था
इसिलिए तो इस जग में , ऐसी नानी को पाया था

धीरे धीरे नानी को , वृद्दावस्था ने भरमाया
समझ गया मेरे सिर से ,अब उठने  वाला है साया

पावन कार्तिक माष सुनहले मौसम ने अंगडाई ली
दे आशीष सभी को प्यारी, नानी स्वर्ग सिधार गई

अक्टूबर अषटादश तिथि को, दो हजार  का साल हुआ।
नब्बे वर्ष की दीर्घायु में , उनका महाप्रस्थान हुआ

रही धधकती चिता देर तक , जडवत  बैठा देख रहा
अपनो से इस तरह बिछुडना , यही विधि का लेख रहा

ईश्वर भी यदि पूछे मुझसे ,अपनी इच्छा बतलाऊं
जनम जनम में केवल अपनी , नानी का आंचल पांऊ

विजय सिंह मीणा
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